साधना से एक दिन सब पाया जा सकता है. वैदिक युग में समाधि में लीन ऋषि गण भौतिक जगत् के बारे में भी वे सभी जानकारियां पा जाते थे जो आज विज्ञानं विभिन्न gadgets का उपयोग कर पाने का प्रयास कर रही है.
आप विदेश में रहकर भी अपने संस्कारों के कारण विश्व के एक मात्र धर्मं ' स्व की खोज' के प्रति जागरूक रह सकते हैं दुःख का विषय तो यह है कि भौतिकता की झूटी चमक दमक एवं इंद्रिय सुखों की तलाश में भटकता हुआ पश्चिम का अनुकरण कर भारत का मानव भी अपने जन्म के हेतु को विस्मृत कर रहा है. भारत के शिक्षित वर्ग को भी अपने सनातन कर्तव्य का स्मरण कराने एवं उस की राह दिखाने वाले अत्यंत अल्प मात्र में विद्यमान हैं!
मानव जीवन की समाप्ति के पूर्व प्राचीन महर्षि अकल्पनीय ऊंचाइयों को पा लेते थे तो आज भी क्यों नहीं संभव है ;यह प्रश्न विचारणीय है. आज भी जिज्ञासु के लिए गुरु उपस्थित है तथा अहेतुकि कृपा वृष्टि करने के लिए तत्पर हैं. किन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के पश्चात् भी आवश्यक अभ्यास न होने से वांछित उपलब्धि नहीं मिल पाती.
कृपा प्राप्त जिज्ञासु के द्वारा पर्याप्त प्रयास न कर पाने एवं जिज्ञासुओं की संख्या में कमी आने का कारण भी स्पष्ट लक्ष्य है. आज पश्चिमी प्रभाव की सभी वर्गों में व्याप्ति होने के कारण भौतिक उपलब्धियों और वासनाओ में भी वृद्धि हो चुकी है. आज संपन्न व्यक्ति को समाज में ज्ञानी एवं विरागी की अपेक्षा अधिक सम्मान प्राप्त होता है.
विषम परिस्थितियों की विद्यमानता के उपरांत भी अपने जन्म की मौलिक आबश्यकता के प्रति चेतना बनाये रखना ही हमारा कर्तव्य है फिर ईश्वर किसी न किसी रूप हमें उस मार्ग जाने के लिए किसी न किसी प्रकार से अवसर निर्माण अवश्य करते हैं