शनिवार, 14 नवंबर 2009

MERE GURUBHAI

आदरणीय ललित बिहारी श्रीवास्तव 
  • मेरे गुरु भाई ही नहीं वरन  मेरे पथ प्रदर्शक भी हैं. गुरुदेव  से प्राप्त शक्तिपात के अधिकार के फलस्वरूप न किसी प्रकार की आत्म-प्रशंसा और  न ही गर्व का लेश मात्र भी उन्हें छू सका है. एक सामान्य व्यक्ति के समान रहना, उठना-बैठना, बात व्यौहार उनकी आतंरिक सिन्धु सी साधना की  गंभीरता को किसी प्रकार से भी व्यक्त नहीं होनी देता. इसीलिये किसी परिचित व्यक्ति से भी उनके गुणों का वर्णन श्रोता को विस्मित कर देता है. वेश भूषा आधुनिक होने से आडम्बर रहित जीवन शैली होने से अमुमुक्षों की भीड़ से अपने आप को बचाए रखते हैं. सिद्धावस्था-प्राप्त मेरे गुरुभाई  किसी भी लौकिक मान्यता के मुखापेक्षी नहीं हैं. उनके शिष्य भी उनसे सामान्य रूप से ही मिलते हैं और वे भी उनसे सामान्य बर्ताव की ही अपेक्षा रखते हैं.
ज्ञान, भक्ति, शास्त्र-ज्ञान, रामायण, गीता एवं और न जाने कितने शास्त्रों पर स्वानुभूति परक उनके विचार रचयिता की सोच के पीछे रचयिता की अनुभूतियों में उनकी पैठ को दर्शाते हैं.
  • तुलसीदास के राम और हनुमान की साकार साधना के समर्थक होते हुए भी तुलसी रामायण के राम की साकार ही नहीं उन के निर्गुण निराकार स्वरुप को दर्शानेवाले अंशों की विवेचना भी  रामायण के माध्यम से बड़ी सहजता से बोधगम्य बना देते हैं. प्रतिभावान पुरुष किस प्रकार इन विभिन्न मान्यताओं को एक माला के अन्दर विभिन्न मणियों के समान संजो कर रखते हैं आश्चर्य कारक है.
  • वे हमारे समग्र उद्धार के प्रति सजग रहते हुए भी बिना बताये उपकार कर देते हैं हमें पता भी नहीं चलता; और इसको एक सामान्य सी बात के सामान विस्मृत कर देते हैं.
  • गीता में जीवन कैसा जीना चाहिए उसे वे वचनों से नहीं अपने स्वयं के उदाहरण से प्रर्दशित करते आरहे हैं.
  • साधुवाद ; उन्हें जो उनके संपर्क में आकर उनके साथ लव मात्र भी सत्संग पा सका है.

मनीषियों की उदारता


मनीषियों की उदारता
दिनांक १२.११.०९ के दैनिक भास्कर में प. वि. श. मेहता ने ध्यान की गंभीरता को एक सूफी संत के जीवन की एक घटना के  माध्यम से व्यक्त किये हैं! ध्यान  में  अनुभूति के गंभीर पलों में शांति की स्थिति में  स्वावलोकन से प्राप्त निष्कर्ष के बहुमूल्य मोतियों को जनसामान्य में बिखेरने या जन सामान्य के रसास्वादन हितार्थ परोसना  उदारता का परिचायक होता है.

ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए वैसी शांति पाना ही सनातन धर्मं के अनुयायियों का प्रथम एवं एकमात्र ध्येय होना चाहिए जो मानव जन्म को सार्थकता प्रदान कर सके. भौतिकता से परे सत्यान्वेषण के मार्ग का अनुसरण करने का मौलिक अधिकार पाना भारत भूमि पर जन्म पाने के सौभाग्य का द्योतक है. जो निश्चय ही  ब्रह्म्वेद्ग्यता की ओर ले जाता होगा. देश की युवा पीढी अपने मूल को पहचानने के मार्ग पर उद्यत हो ऐसी मशाल आप जलाएं एवं सतत अपने लेखों से समाज को ईर्ष्या, घृणा, मोह, एवं हिंसा से अनिवार्यतः मुक्त होने की प्रेरणा देने के लिए मनीषी लेखकों की  लेखनी से सदा होता रहे जब तक हमारे दिग्भ्रमित देशबंधु जाग्रत न हो जाएँ. पुनः स्वामी विवेकानंद जैसी वाणी,एवं लेखनी से  जाग्रति फैलाने का अवसर आ गया है. समाज की  तात्कालिक परिस्तिथियों में भ्रमितों को मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता सदैव बनी रहती है ! समाज का अध्ययन कर शाश्वत सत्य का मार्ग दिखाने का कार्य विश्लेष्णात्मक बुद्धि सम्पन्न मनीषी साहित्यको का ही होता है.
दैनिक भास्कर को भी साधुवाद है जो प्रेरणादायक लेखो को स्थान देता है पुनः पुनः साधुवाद 
  ओम प्रकाश श्रीवास्तव

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