मनीषियों की उदारता
दिनांक १२.११.०९ के दैनिक भास्कर में प. वि. श. मेहता ने ध्यान की गंभीरता को एक सूफी संत के जीवन की एक घटना के माध्यम से व्यक्त किये हैं! ध्यान में अनुभूति के गंभीर पलों में शांति की स्थिति में स्वावलोकन से प्राप्त निष्कर्ष के बहुमूल्य मोतियों को जनसामान्य में बिखेरने या जन सामान्य के रसास्वादन हितार्थ परोसना उदारता का परिचायक होता है. ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए वैसी शांति पाना ही सनातन धर्मं के अनुयायियों का प्रथम एवं एकमात्र ध्येय होना चाहिए जो मानव जन्म को सार्थकता प्रदान कर सके. भौतिकता से परे सत्यान्वेषण के मार्ग का अनुसरण करने का मौलिक अधिकार पाना भारत भूमि पर जन्म पाने के सौभाग्य का द्योतक है. जो निश्चय ही ब्रह्म्वेद्ग्यता की ओर ले जाता होगा. देश की युवा पीढी अपने मूल को पहचानने के मार्ग पर उद्यत हो ऐसी मशाल आप जलाएं एवं सतत अपने लेखों से समाज को ईर्ष्या, घृणा, मोह, एवं हिंसा से अनिवार्यतः मुक्त होने की प्रेरणा देने के लिए मनीषी लेखकों की लेखनी से सदा होता रहे जब तक हमारे दिग्भ्रमित देशबंधु जाग्रत न हो जाएँ. पुनः स्वामी विवेकानंद जैसी वाणी,एवं लेखनी से जाग्रति फैलाने का अवसर आ गया है. समाज की तात्कालिक परिस्तिथियों में भ्रमितों को मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता सदैव बनी रहती है ! समाज का अध्ययन कर शाश्वत सत्य का मार्ग दिखाने का कार्य विश्लेष्णात्मक बुद्धि सम्पन्न मनीषी साहित्यको का ही होता है.
दैनिक भास्कर को भी साधुवाद है जो प्रेरणादायक लेखो को स्थान देता है पुनः पुनः साधुवाद
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें