हमारे गुरुदेव श्री गंगाधर प्रकाश अहेतुकी कृपा वृष्टि करने वाले गुरुओं की श्रेणी में उनकी सहजता व सरलता के कारण अद्वितीय हैं . शक्तिपाताचार्य गुरुदेव को शत् शत् नमन ...
महाराजश्री अपने गुरु देव श्री विष्णु तीर्थ जी के साथ देवास के नारायण कुटी आश्रम में ध्यानस्थ थे. बाहर कोई गुरुदेव को पुकार रहा था. उस समय परम् पूज्य श्री विष्णु तीर्थ जी महाराज एवं गुरुदेव श्री गंगाधर प्रकाश के अतिरिक्त अन्य कोई भी सेवक या साधक कुटी में निवास नहीं करता था.पर्याप्त काल तक पुकारे जाने के फलस्वरूप समाधिष्ठ गुरु देव अपनी स्वरुप-में-स्थिति से निष्क्रमण कर सहसैव चेतना के किंचित निम्नस्तर पर आ गए;
अपने चिंतन के स्तर के विषय में कुछ विचार कर पाते कि उन्हें पुनः किसी आगंतुक की पुकार सुनायी पडी, वे तत्काल अपने आसन से उठकर बाहर आगये. आगंतुक उनसे कुछ कहे बिना ही चरणों में गिरकर प्रणाम करने लगा. ब्रह्मचारीजी श्री गंगाधर प्रकाश ने उसे किंचित स्पर्श कर नारायण-नारायण कह आशीष दिया. बस, आगंतुक को, तत्काल शक्ति के उद्वेग हो जाने के फलस्वरूप विभिन्न क्रियाएं घटित होने लगीं..
बाहर उन क्रियायों की ध्वनि से प्रभावित हो महाराज श्री विष्णु तीर्थ जी भी बाहर आगये. पूछने पर कि क्या हुआ, ब्रह्चारी जी ने कहा स्वामी जी यह कोई आपका परिचित होगा; इसने मुझे प्रणाम किया; मेरे किंचित स्पर्श एवं उसके अभिवादन के प्रत्याभिवादन के फलस्वरूप इस पर तीव्र शक्तिपात हो गया; अब आप देखें इसका क्या करना है. स्वामी जी बोले नहीं अब यह तुम्हारा अनुग्रह प्राप्त कर चुका है इसको अब तुम्ही उचित रूप से मार्ग दर्शन देना. संतों की कृपा कब किसे बिना किसी हेतु के प्राप्त हो जाए कहा नहीं जा सकता.
ॐ आनंदं
1 टिप्पणी:
Anek shubh kamnayen!
एक टिप्पणी भेजें